SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 572
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०२ जिनहर्ष ग्रंथावली जोवो श्री संभूति प्रसिद्धो, तन फरसे नीयांणो कीधो लाल । द्वादशमो चक्रवर्ती अवतरीयो, चित्त प्रतिबोध तेहने दीधो लाल।३८। तेहने उपदेशे लेश न लागो, विरतन का कायर थई भागो लाल।। सातमी नरकतणां दुख सहीया, स्त्री फरसे अवगुण इम कहीया।३६॥ काम विराग वधै दुख खांणी, नरक तणी साची सहिनाणी । इक आसण इम दूपण जाणो, परिहर निज आतम हित आंणी।४० - माय वहन जो बेटी थाये, ते बैसी ने ऊठी जाये। । कलपे इकण मोहर्त पाछो, वैसेवो जिनहर्ष सु आछौ ॥४१॥ चित्र लिखित जे पूतली, ते जोयेवी नांहि । केवलनाणी इम कहे, दशवकालिक मांहि ॥४२॥ नारि वेद नरपति थयो, चक्षु कुशील कहाय । लख भव चोथि वाडि तजी, रुलियो रूपी राय ॥४३॥ ___ डाल ॥ मोहन मुदड़ी लेगयो । मनहर इन्द्री नारिना, दीठां वधै विकारि । वागुर कामी मृग भणी हो, पास रच्यो करतार सगुण नर नारी रूप न जोइयेरे, जोइये नहीं धर राग सुगुण नर ॥४४॥ नारी रूपे दीवलो, कामी पुरुष पतंग । झंपे सुखने कारण हो, दाझै अंग सुरंग ॥४॥ मन रमतां हीये, उर कुच वदन सुरंग। नहर अहर भोगी डस्यो हो, जोवंतां व्रत भंग ॥४६॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy