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जिनहर्ष ग्रंथावली जोवो श्री संभूति प्रसिद्धो, तन फरसे नीयांणो कीधो लाल । द्वादशमो चक्रवर्ती अवतरीयो, चित्त प्रतिबोध तेहने दीधो लाल।३८। तेहने उपदेशे लेश न लागो, विरतन का कायर थई भागो लाल।। सातमी नरकतणां दुख सहीया, स्त्री फरसे अवगुण इम कहीया।३६॥ काम विराग वधै दुख खांणी, नरक तणी साची सहिनाणी । इक आसण इम दूपण जाणो, परिहर निज आतम हित आंणी।४० - माय वहन जो बेटी थाये, ते बैसी ने ऊठी जाये। । कलपे इकण मोहर्त पाछो, वैसेवो जिनहर्ष सु आछौ ॥४१॥
चित्र लिखित जे पूतली, ते जोयेवी नांहि । केवलनाणी इम कहे, दशवकालिक मांहि ॥४२॥ नारि वेद नरपति थयो, चक्षु कुशील कहाय । लख भव चोथि वाडि तजी, रुलियो रूपी राय ॥४३॥
___ डाल ॥ मोहन मुदड़ी लेगयो । मनहर इन्द्री नारिना, दीठां वधै विकारि । वागुर कामी मृग भणी हो, पास रच्यो करतार सगुण नर नारी रूप न जोइयेरे, जोइये नहीं धर राग सुगुण नर ॥४४॥ नारी रूपे दीवलो, कामी पुरुष पतंग । झंपे सुखने कारण हो, दाझै अंग सुरंग ॥४॥ मन रमतां हीये, उर कुच वदन सुरंग। नहर अहर भोगी डस्यो हो, जोवंतां व्रत भंग ॥४६॥