SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 553
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेत्रीस गुरु आशातनास्वाध्याय गुरू तजि वीजा आगलइ, आहार आलोवइ ।' गुरु पहिली बीजा भणी; देखाड़इ जोवइ ॥६॥ - - गुरु पहिली अन्य साधु नइ, भात पाणी थापइ । ' सरस मधुर अणपूछीयइ, भावइ तेहनइ आपइ ।।७।। गुरू नइ अरस निरस दीयइ, पोतइ सरस आहारइ । चचन तहति करि पडिवजह, गुरू नउ न किवारइ ॥८॥ कर्कस बोलइ गुरू प्रतिइं, बइठउ धइ ऊतर । गुरू पूछइ कहइ छइ किसू, इम भाखड़ नूतर गु॥ तुकारा गुरु नइ दियइ, वैयावच कहि एहनउ । तुम्हे ईज कां करता नथी, मनमानइ तेहन ॥१०गु।। गुरू शिक्षा मानइ नहीं, सून्य चित्त रहावइ । विस्मृत अर्थ जइ होयइ, तुम्ह नइ रूड नावइ ॥११॥ गुरु व्याख्यान विचइ करइ, व्याख्यान समेला । कथा कहता बहि गई, विहरणनी वेला ॥१२॥ ' लोक समख्यइ गुरु कबउ, जे अरथ .विचार । ने पोतइ फेरी कहह, करिनइ विस्तार ॥१३गु॥ चरण लगावइ बइसणइ, वइसइ गुरु पाटइ । वार करइ गुरु पातरइ, ऊँचउ बइसइ निराट ॥१४गु।। वइसइ सुगुरु बरावरी, विनइ नहीं तेह । ऊँच वस्त्र अति वावरे, निज गुरु थी जेह ॥१५॥ ऐ तेत्रीस आसातणा, चउथइ अंग भाखी ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy