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जिनहर्ष ग्रंथावली एनर तिथि स्वाध्याय
ढाल - कपूर हुवे अति ऊजलउ रे -एहनी पड़िवा दुरगति वाटड़ी रे, नारी विषय विलास। जाणी परिहरि जीवड़ा रे, जउ चाहे सिववास रे ॥१॥
प्रांणी बूझि म मृझि गमार । सदगुरु वयण हियड़े धरे रे, जिम पामे भवपार रे ॥प्रा०॥ बीज सुकृत नउ रोपिये रे, धरीये शील अखण्ड । समता रस मांझीलिये रे, पवित्र हुवे जिम पिंड रे ॥रप्रा०॥ त्रीजइ अंगई जिन कहिये रे, विकथा च्यारि निवारि। करिस्ये ते फिरिस्यइ सही रे, चउगति भ्रमण मझारि रे ॥३प्रा।। चतुर हंस तूं वुथिमां रे, अपवित्र नारी अंग। पंडित नर ते परिहरे रे, न करे तास प्रसंग रे ॥४मा।। पंचमि अंग जमालिये रे , ऊथाप्यउ जिन वइंण । तउ भव मां भमिस्ये घणुं रे, जोइ उघाड़ी नैण रे ॥५मा । छठी रातईज लिख्यउ रे, सुख दुख विभव विलास । तिणि मई रंच घटे नहीं रे, म करि वृथा वेपास रे ॥६प्रा।। सातिमी नरक सुभूमि नेरे, पहुचाड्यउ इणि लोभ । लोभ न कीजे अति घणउ रे, तउ लहिये जग सोभ रे॥७प्रा॥
आठ महा मद छाकियउ रे, मयगल ज्यूं मय मत्त । २. उवट वाट न ओलखेरे, योवन चंचल चित्त रे॥८प्रा।।