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बारह मास गर्भित जीव प्रबोध
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जोइ लंका ईस रावण, जे हुतउ बलवंत रे । जउ थयउ पर नारि रसीयर, हण्यउ सीता कत रे ॥श्च।। पुरुष सोभा द्रव थकी हुइ, द्रव्य सोभा दान रे। दान सोभा पात्र उत्तम, इम कहे भगवान रे ॥६चे।। खिणिक मां आ सूकि जास्यै, कनक काया वेलि रे। सींचि सुकृत जल प्रबल सुं, जिम हुवे रंग रेलि रे ॥७चे।। काती लीये कर काल डोले, राति दिन तुझ केडि रे। ध्यान प्रभु समसेर ग्रही ने, नाखि तास उडिरे ॥८च।। मागसिर चइसी राड तुं, फोरवह नहीं प्राण रे। चालि उद्यम क्रिया करतां, लहिसि फल निर्वाण हिच।। पोसि मां ए अथिर काया, कारिमी करि जांणि रे। जतन करतां पिणि न रहिस्यइ, अछइ अवगुण खाणि रे॥१०॥ माहरि ए सीख मनमां, धारिजे तूं मीतरे । धरम संवल साथि लेजे, चालिवं छइ अंत रे ॥११चे।। नफागुण जिणि मांहि थाये, भलउ ते व्यापार रे। देव गुरु सुध धर्म आदरि, लहे भव दुख पार रे ॥१२चे।। चार मास लगई सयाणा, तुझ भणी ए सीख रे। भाव भजि जिनहरप आणी, लहे सिव सुख ईख रे ॥१३चे।।
इति 'वार मास' गर्भित स्वाध्याय