________________
काया जीव सन्माय
४७५
जेहवउ रंग पतङ्ग हरिद्रनउ, तेहवउ रंग नारी नउ । कहे जिनहरख कदी किणिहीसं, एहनउ चित्त न भीनउ ॥१४॥
॥ इति स्वाध्याय ।। काया जीव सज्झाय
ढाल-श्रेणिक राय हु रे अनाथी निग्नथ -एहनी काया सलूणी वीनवे, सुणि कंतजी मुझ वात । बालापण नी प्रीतडी, तुझ साथे रे रंगाणी धात॥११।। परदेसी लाल ऊठि चल्यउ परदेश, मुझ साथे रे नही प्रेम विसेस पा मुझ सङ्ग रमतउ खेलतउ, करतउ विविध विनोद । __ मनरंग हसतउ मुलकतउ, तुंधरतउ रे मन माहि प्रमोद ॥२५।।
रहतउ न मुझ थी वेगलउ, तुं कन्तजी खिण मात । सुख भोग मुझसं माणतउ, रस भीनउरेरहतउ दिन राति ॥३॥ जातउ नहीं मुझ छोड़ी नइ, किणि ही न काम कल्याण । हुँ पिणि कबउ नवि लोपति, तु म्हारे रे हुतउ जीवन प्राण ॥४॥ तुझ विना हुँ स्या कामनी, तुझ विना हुअकयस्थ । तुझ विना भाग सुहागस्यउ, तुझ पाखइ रे नहीं कोई अरत्थशा
चलतुं कहे प्रिउ इणि परइ, सुणि नारी मूढ गमार । __तुझ साथ माहरे किम बने, मुझ करिवा रे फिरी २ व्यापार ॥६॥
लख चउरासी पाटणे मइ, कीया छइ विवसाय । वली करिसि माहरी मौज में, एक ठामे रे मइं राउ न जाय ॥७॥