________________
४७०
जिनहर्ष ग्रंथावली
चतुर्विध धर्म सज्झाय
ढाल-आज निहेजउ रे दीसइ नाहलउ-एहनी जीवड़ा कीजे रे धरम सं प्रीतडी, जेहना च्यारि प्रकार। दान सील तप रूड़ी भावना, भव भव एह आधार ॥१जी।।
धन नामे सारथपति नइ भवई, दीधउ धृत नउ रे दान । ' समकित लघु तिहां निर्मलु, थया रिसभ भगवान ॥२जी।।
अभया राणीरे दृषण दाखन्यु, मूलारोपण होई।। शील प्रभावे रे सिंहासण थयं, सेठि सुदरसण जोई ॥३जी। अरजनमाली रे माणस मारतउ, दिन दिन प्रति सात । करम खपावी रे मुगतिइंगयउ, तप ना एह अवदात ॥४जी।। ऊभउ आरीसा ना महल मई, चक्रवत्ति भरत सुजाण । अनित्य भावनारे मनमां भावतां, पाम्युं केवलनाण ॥५जी।। चउगतिना भंजण च्यार कह्या, जिनवर धरम रसाल । भविक जिके जिनहरख धरम करड्, बंदण तास त्रिकाल ॥६जी।।
पंच प्रमाद सज्झाय
ढाल भावननी॥ पंच प्रमाद निवारउ प्राणी वेगला रे, जे पाड़इ संसार । छेदन भेदन वेदन नरक निगोदनारे, आपइ दुख अपार ॥१५॥ जात्यादिक आठे मद मदिरा सारिखा रे, एहथी वधे उदमाद. जे जे करीये तेते हीण पामीये रे, पहिलउ तजि परमाद ।।२।।