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जिनहर्प ग्रंथावली
अरथलाभ अम जोईयेरे हां, गणिका हासी कीध ।। २नं ।। जाण्यउ ए नहीं कुलबहू रे हां, एतउ वेस्या नारि । नं। अणवोल्यउ पाछउ वल्यु रे, हां चली आध्यं अहंकार ॥३ना। खांच्यु घर नउ तिणखलउ रे हां, लगरि क हाथ मरोडि नं। वृष्टि थइ सोवन तणी रे हां, साडी बारह कोडि ॥ ४ ॥ चतुर नारी चित चमकीयउ रे हां, लागी रिपि ने पाइ ।नं। धन लेई जाअउ तुम रे हां, कइ भोगवउ ईहां आइ ।। ५नं ।। करस मोग मुनिवर तणइ रे हां, उदय आव्यउ तिणि वार ना नारी वयण सुहामणा रे हां, लागा अमृत धार ॥ ६ ॥ वेस्या सं सुख भोगवे र हां. दस दस दिन प्रति बोधि ।नं। श्री जिन पासई मोकले रे हां, इम करे अभिग्रह सोध ॥ नां। बार वरस ने आंतरे रे हां, कठिन मिल्यं एक आइ । नं। प्रतिबोध्यउ वृझे नही रे हां, ते फिरि साम्हउ थाइ ॥८नं ।। वेस्या आवी वीनवे रे हां, ऊठउ जिमवा स्वामि । नं । ‘एक वि वार आवी कहुरे हाँ, तउ ही न ऊठे ताम || हनं ॥ हसती बोली हंस सुं रे हां, दसमा तुम्हें थया आज । नं। वचन तहति करि ऊठीयउ रेहां, आज सर्या मुझ काज ॥१०।। फेरि चारित्र आदयं रे हां, आलोयां सहु पाप । नं । कहे जिनहरख नमुं सदा रेहां, चरण कमल सुख व्याप ॥११।।