________________
मेतारज मुनि समाय
४५५
वसुधारा वर्षण करइ, मुनि दान प्रतापे रे ॥१५॥ . निरवद्य योग कही करी, प्रतिवोध्या विप्रो रे । कहे जिनहरख महामुनि, गया मुगते खिग्रो रे ॥१६ह।।
मेतारज मुनि सज्झाय श्रेणिक राजा तणोरं जमाई, जात तणो साहुकार जी मेतारज संजम आदरीऊ, क्षमा तणो भंडार जी ॥१२।। ऊंच नीच कुल भीख्या अटतो, लेतो सुध आहार जी सोवनकार तणे घर आयो, मुनि दीठो सोनार जी, ॥२।। भाव वंदे ते उठिनै, भलै पधाऱ्या आज जी खबर देइ ने घरमें आयो, ऊभा रह्या रिपराय जी ॥३॥ सोवन जव तिहां मुक्या हुँता, ते सहु गलिया क्रोंच जी सोवन जब सोनार न निरखै, इसौ थयौ प्रपंच जी ॥४श्री। जव उरा आपो मुझ रिख जी, म करो इवड़ो लोभ जी ऋद्धि छोडिने तुम्हें व्रत लीधो, म गमो संयम सोभ जी ॥५श्री। नाम प्रकास्यो नवि पंखी नो, आणी करुणा साध जी सोनार घर में तेडि ने, माथे वीट्यो वाध जी ॥श्र। तावड़ सं ते वांध सुकाणो, अति भीडाणो सीस जी ते वेदन सही सवली पिण, मन में नाणी रीस जी ॥७॥ आंख पड़ी थे. धरणी छिटकी नै, पांम्यो केवलग्यान जी मेतारिज रिख मुगते पंहता, पाम्यां सुख असमान जी ॥८॥