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________________ जिनहर्ष ग्रंथावली ढाल ५ ॥ सुणि वहिनी पीउडर परदेसी ॥ एहनी चिसम सही उपसर्ग चिलाती, - पुत्र तिहांथी मूअउरे । शुभ ध्याने सुभ भाव संयोगे, सुर भुवने सुर हूअउ रे ।। २५वि।। अनुक्रम तेह परम पद लहिस्य, करम कठिण निज दहिस्यड़ रे । एहवा साधु तणा गुण ग्रहिस्ये, सुरनर तेहने महिस्यड़ रे || २६ वि || साधु चिलातीपुत्र नमीजइ, सगला पाप गमीजइ रे । मानव भवनं लाहउ लीज, निज मन निर्मल कीजे रे || २७ वि ॥ साधु तंगी संगति सुख लहीये, साधुसंगति दुख दहीये रे । साधुतणी आणा सिर बहीये, तउ भवमांहि न फहीयड़ रे ।। २८वि ॥ एहव उपसर्ग नवि भाजइ, सदगति मांहि विराजइ रे । तेहनी कीरति त्रिभुवन गाजे, जसनी नउबति बाजे रे || २६ वि|| जीभ पवित्र हुवइ मुनि थुणतां, श्रवण पवित्र जस सुणतांरे । कहे जिनहरख जासु गुण गणतां, जनम सफल हुड़ भणतांरे ॥३०॥ प्रसन्नचंद राजर्षि स्वाध्याय ४५२ ढाल || जिहो मिथिला नगरी नउ घणी ॥ एहनी जीहो राजगृह पुर एकदाजी, जीहो समवसर्या महावीर - । जीहो बाट चिचड़ काउसग राउ, जीहो पामेवा भवतीर ॥१॥ प्रसनचंद बंदु तोरा पोय, जी हो राज देई लघु पुत्रने, जीहो आप थया निरमाय । प्रof जी हो श्रेणिक आवे वांदिवा, जी हो वीर भणी तिणि वार
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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