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जिनहर्ष ग्रंथावली धरम मारग थिर थापीयौ हो लाल, आंकुस जिम संडाल रह० थाज्यो माहरी वंदणा हो लाल, कहे जिनहरख त्रिकाल रिह०६॥
ढंढणकुमार समाय ढाल || १ करकडूने करूं वंदणा हुँ वारी ।।
२ वाल्हेसर मुझ वोनति गोडीचा एहनी ढंढण रिपिने वंदणा हुँ वारी, उतकृष्टउ अणगार रे हुंवारीलाल __ अभिग्रह कीधु' माहरी हुंवारी, लवधे लेस्युं आहार रो।हुंवारी।।१।।
दिन प्रति जाये गोचरी हुवारी, मिलइ नही सुधभातरे।हुंवारी। नलीये मूल असूझतउ हुँवारी, पंजर हूअउ गात रे हुं वारी।।२ढी! हरि पूछड् श्रीनेमिनइ हुँ वारी, मुनिवर सहस अठार रे ।हुं वारी। उत्कृष्टउ कुण एह मा हुं वारी, मुझनइ कहउ विचार ।।हुवारी२ढं ढंढण अधिकउ दाखीयउ हुवारी, श्रीमुखिनेमि जिणंद रे हु। कृष्ण ऊमायउ वांदिवा हुवारी, धन यादव कुल चंद रे हु॥४ढी गलीयारइ मुनिवर मिल्युं हुं वारी, वांदइ कृष्ण नरेस रे हुँ। किणि ही मिथ्याती देखिनइ हुँवारी,आयं भाव विसेसरे हुँ०५ढी आवउ मुझ घर साधुजी हुँवारी, ल्यु मोदक छ सुद्ध रे हुवारी। - रिपिजी वहिरी आवीयाहुं वारी, प्रभुजी पासि विसुद्ध रेहु ॥६ढी। मुझ लवधई मोदक मिल्या हुवारी, पूछइ दाखो कृपाल रे हुंवारी लवधि नहीं ए ताहरी हुवारी, श्रीपति लब्धिनिधान रे हुंवारी।।
१ लीधो २ आपणो ३ आयो ४ ल्यो ५ लेइ ६ कहै