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________________ चौबोली कथा कवित्त ४४१ कुण रोवइ करि खबरि, ऊठि चाल्यो नप लारइ । कोइ रो, त कवण भूप कुलदेवी भाखई। दिन त्रीजइ नप मीच, कष्ट किम टलइ सु दाखै । निज हाथ मारि सुत घाव सं, बल मोनुं जो को दीयइ । नरराइ रहै तउ जीवतो, वीर जाइ निज सुत लीये-१६ आई साथे अवल पूति, करि घाउ चढ़ायौ। माइ मूई उरि फटि, वीर निज सीस बढ़ायौ । राइ करइ अपघात ताम देवी करि- झालइ । तो ए करि सरजीत, हुआ जीवति उठि चालै। ___ सतवंत हार कुण ओलगू, ताती होइ भाखे तथा । जिनहर्षे सत्त राजा अधिक, चौबोली च्यारे कथा-२० च्यार बार, बोलाय, चार फेरां सं परणी । वरत्यां मंगलच्यार, च्यार . वेदों गति करणी । . च्यारे दिसि जस हूयौ, च्यार जुग तांइ. नामो। च्यार दरसण गुण चवइ, पुहवि सुख सपति पामौ । नवनिधि सिद्धि आठे अचल, विक्रमराइ धावियौ । जिनहर्ष नगारे निहसते, उज्जेणीपुर आवीयौ-२१
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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