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________________ ४०६ -जिनहर्ष मन्थावली निसनेही न आवत तोही सखि मरिहुँ मेरी' दुख्य वलाइ सहै।।११ वारसि वांमण बुझ्यौ सहेली री मोहि कहो कव प्रीतम आवं ज्योतिष राउ बड़े जसराज सुतौ पिय साच अगम्म वताव करक लगन्न भयौ वर सुंदर राम करै तौ सही सुख पावै च्यार दिवस्स में नाह मिले विरहानल की झल आइ वुझावै.॥१२॥ आज सखी खटमास बरावर तेरिस वासर नीठ गमायो सनंमुख राति अन्वझ भई दृग देखत ही जिय मै डर आयौ नखत्र गिणंत निशां निठ बौरी निसाकर आतम ताप लगायौ जसा पतियां लिख दीनी मनेही कुंताको कदै मुहिकागद नायो।१३. उजुवारी चोदस देवीको वासुर देवल संत मिले हरसै सझि ताल कंसाल पखाउज ले नटई मिलि नाचारंभ तिस धनसार अपार सुकेसर चंदन पूजन कुं नर नारी इसै" जसराज भवानी कुं ध्यावत नागर मो.मनमै मेरो स्याम वस॥१४॥ पूनिम दीध वधाई सखी री तेरे धरि प्रीतम तोही. पधार्यो. खुसी भई उठि सनमुख जाइ वदन्न विलोकित दुक्ख विसार्यो मिलि के 'दोउं कामिनि कंत हसंत सरीर तिया अपनौ सिनगायो फली उर की सब आस विलास भले जसराज सनेह वधास्यो।१५ इति श्री पनरह तिथरा सवैया संपूर्णम् । पठिान्तर-१. तेरी २. आगम साच ३. कह्यो चिर ४. आनसंताप ५ कसै ६ देउलसंत ७. घसै ८. तन मैं।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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