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जिनहर्ष ग्रन्थावली एतउ मातउ पावस मास, दुभर रातडी रे ।आं०1 ऊमटि आव्यउ वालहा रे, भादरवे जलधारो ॥ । नयणे जलधर ऊल्हर्यउरे, जाग्यउ विरह अपारो। जाग्यउ विरह अपार पियारा, तुझ पाखइ किम रहुं निरधारा ॥ तं प्रीतम मुझ प्राण आधारा, विरह वुझाइ करउ उपगारारजी।। आसू मो मन आसडी रे, सूईयइ एकणि सेजो। करीयइ मननी चातडी रे, हीयडइ आणी हेजो । हीयडइ आणी हेज निजा, ढोहइ कांई चिण्या ए चेजा। हेजइं मिलिकइ तउ मुझ लेजा, प्रीति करे कांइ रेजा रेजा ॥३जी।। काती छाती मई वहइ रे, कबउ न मानइ कता । ए वाल्हउ नीटुर थयउ रे, कांइ न पूरी खंतो ।। । कांई न पूरी खंति हीयानी, आरति सवलि नेह कीयानी। ईणइन लही पीडि तीयानी, आस किसी हिवइ मुझ जीयानी॥४जी।। च्यारे मास उलास सुं रे, श्री थलिभद्र जयकारो। काशा नारी वृझवी रे, पाय प्रणम वारंवारा ॥ पाय प्रणम बार-बार सदाइ, मोटा साधु तणी अधिकाइ। नारी संगति सील रहाई, लही जगत जिनहरख भलाई ॥जी॥
स्थूलिभद्र गीत भलै ऊगउ दिवस प्रमाण, पियाजी ! आज रौ सौभागी। मैं तो दरसण दोठौ वाट, जोवंता राज रौ ।। सो० ॥ भरि भरि थाल वधावी, हो गज मोतीयां, सो०