SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮૯ जिनहर्ष ग्रंथावली, पिणि पापिणी ए राति दूभर मुझ छमासी थाइ रे ॥ सेज सूता सुपन माहे, मिलइ प्रीतम आह रे । उघाड़ि नयण निहालि देख, नाह नासी जाइ रे ||७|| जेठ जेठा थया वासर, तपे आतप जोर रे । रवि किरण लागड़ जाणि पावक, करूं ओवि निहोर रे ॥ लू कठिण वाय क्षीण थायड़, देह आकुल व्याकुली 1 ढीला तराणी हुवइ कांकण, हाथ थी जाइ नीकली ॥ इणि रित कंता कांडं मुक्या, गउख मंदिर मालीयां । दधिना करव कपूर वासित, नारी श्रीसह बालीयां ॥ एकवार आवी मिलउ प्रीतम, ताप तन नउ ओल्हवउ । करि अङ्ग सीतल संग करिन, प्रेम रस पाई वउ ॥ तुझ विना सुल समान आभ्रण, अंग लागइ सर सरा । बावना चंदण अगनि सरिसा, मुज्झ लागइ आकरा ||८|| आषाढ़ आयउ गाढ करिन, सूर वादल छाईयउ 1 बरसात रिति आई सहेली, नाह अजी नावियउ || निज महल महिला सांभर्या, परदेशीया नह पिणि सखी । इणि कठिन नाह वीसारिमूंकी, प्रीति कीधी एक पखी ॥ मानसरोवर भणी चाल्या, हंसला पिणि हरसीया । पंखीए पणि नीड़ घाल्या, नरे घर फेरी कीया ॥ नरनारी मिलीया विरह टलीया, सहु थई संयोगिणी । निर्दोष छोडी प्रीति तोडि, कंत कीध वियोगिणी ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy