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________________ ३६२ जिनहर्ष ग्रंथावली बारम बंभयारीणं, हीयडइ धारीजेइ ॥ ५ ॥ नमो किरियाणं, तेरस थानक सुखदाई । नमो तवसीणं, पद चवदमइ जपि चितलाइ ।। पनरम ठामइ गोयमस्स, नमो निति ध्यावउ । जपि नमो जिणाणं, सोलम पद सुख पावउ ॥ ६ ॥ सत्तरमइ थानक, गणीयइ नमो चारित्त । नाणस्स नमो, अठारम गण पवित्त ।। उगणीसम नमो सुयस्स, गुणउ हित आणी। वीसम गमैइ नमो, पवयण परम कल्याणी ।। ७ ।। पहिलइ पद चउवीस, वीचे पनर लोगस्स । सात त्रीजइ चउथे, छत्रीस गणउ अवस्स ॥ पांचमे दस छठइ, वार सात सत्तावीस । आठमइ पांच लोगस्स, सतसठि नवम जगीस ॥ ८ ॥ दसमइ दश इग्यारम, पट हीयडइ धारि । बारमेइ नव तेरमेइ, पचवीम चवदमइ बार ॥ पनरम ठामे सत्तर, सोलमे दस जाप । इग्यारस तेरमेइ, लोगस्स भजि तजि पाप ॥६॥ अठारमइ पांच वली, उगणीसमइ एक । वीसमेइ वीस लोगस्स, गुणीयइ धरी विवेक ॥ एतला लोगस्स मुं, करीयइ काउसग्ग। दुख जनम मरण ना, सहु जाये उसग्ग ॥ १० ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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