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________________ वीस स्थानक स्तवन 'वीश स्थानक स्तवनं + श्री वीर जिणेसर, भाषड़ तप अधिकार । वीसस्थानक सरिखो, तप नहीं कोई संसार ॥ ए तप श्री तूटै, निविड करम ततकाल | ए तप थी लहीये, राज रिद्धि सुविसाल ॥ १ ॥ एथी जायै सहू, आधि व्याधि दुख रोग | एथी सुख लहिये, वंछित भोग संयोग | ए तपनो महिमा, कहतां नावे पार | जे करड़ अखंडित, धन तेहनो अवतार ॥ २ ॥ पहिलइ नमो अरिहंताणं करि जाप । चीजह नमो सिद्धाणं, जपतां जायड़ पाप || त्रीजड़ थानक नमो, पवयण मन उलास | नमो आयरियाणं, चउथड़ पद सुविलास || ३ || चली पंचम थानक, गणीयइ नमो थेराणं । ही डड़ धारउ, छठ पद उवझायाणं ॥ J ★ सातमह 'नमो लोए सव्व साहूणं' वखाणं । नमो नाणस्स आठमह, थानक गणि सुविहाणुं ॥ ४ ॥ नवमइ चितलाई नमो दंसणस्स गणीजइ । दसमेइ नमो विषय संप्पन्नाणं प्रणमीजइ ॥ इग्यारम ठामई, नमो चारित जपीजइ । 1 ३६१
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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