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________________ ३५६ जिन छप्पय', गौतम, पंचपरमेष्टी २४ जिन छप्पय सुखकरण दुखहरण, सुजस धारण उद्धारण । साचवयण मुख रयण, सयण दुञ्जण साधारण।। अमृत रसण उच्चरण, भरण भंडार भलप्पण। तेज तरणि तिन धरण, आप थप्पण उथप्पण ॥ च्यारे वरण वंदे चरण, श्री जिन सासन जयकरण । जिणहरख सरण टाले मरण, गौतम त्रिभुवन आभरण ॥१॥ जपतां गौतम जाप, पाप संताप प्रणासे । जपतां गौतम जाप, चले लखमी घर वासे ।। जपतां गौतम जाप, जुडइ कामिणि कुलवंती। जपतां गौतम जाप, अवल कीरत्ति अनंती ॥ गौतम जाप जपता जुडइ, सुखदायक सुत उज्जला । । जिनहरख जप गौतम जिके, तास वधइ जग में कला ॥२॥ अष्टापद आपरी, लवधि चढ़ीया लीलागर ।. वंदे जिन चउवीस, देव प्रतिबोधि दया कर ॥ तापस पनरस त्रिण, पात्र एकण परमाणे । पहुचाडे 'पारणउ, दीयउ वलि केवल दाने ।' अठवीस लबधि अंगइ वसई, वडउ शिष्य श्रीवीर रउ। जिनहरख जास. महिमा जगत्र, सो गौतम तुम जप करउ ॥३॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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