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________________ ३५८ जिनहर्ष ग्रंथावली ! 1 a समुहपाल रहनेम सुसाह, केसी गोयम गुणे अगाह | विजयघोष जयघोष वखाणि, मुनिवर सहु वढुं सुविहाण ||२४|| ब्राह्मी चंदनबाला सती, द्रुपद' सुता वलि राजेमती । कौसल्या नैं मिरगावती, सुलसा सीता पदमावती ॥ २५ ॥ सिवा सुभद्रा कुंती नमूं दवदंती नामै दुख गमूं । सीलवती पुप्फचूला एह, इत्यादिक नमियै गुणगेह ||२६|| अढीदीप मांहे मुनिवरा, हुआ हुसी अछड़ गणधरा । पंच महाव्रत ना प्रतिपाल, संयमधारी नमुं त्रिकाल ||२७|| आणंद गाहाब कामदेव, चुलणीपिया नमुं सुरादेव । चुल सतक न कंडकौलीयो, सद्दालपुत्र कुंभार खोलीयौ ||२८|| महासतक नमि नदणीपिया दसम : लित्त की पिया थिया । एका अवतारी ए दसे, प्रणमीज हियडै उल्लसै ॥ २६ ॥ वीजाई मुणिवर छे वणा, तेह तणां लीजै भामणां । धरमी श्रावक नैं श्राविका, ते पिण प्रणमीजै भाविका ॥ ३० ॥ रिपि बत्तीसी जे नर गुण, भणै भावसुं श्रवणे सुणै । रिद्धि वृद्धि पायें गुणगेह, अजर अमर पद लाभ तेह ||३१|| उत्तम नमतां लहियें पार, गुण ग्रहतां थायै निसतार । 'जाये दूरि करमनी कोडि, कहै जिनहरख नमूं कर जोड़ि ||३२|| ॥ इति श्री रिषि बत्तीसी स्वाध्याय || २ 10:1 १ द्रौपदी सती २ लुतकी सुखिया थया ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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