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श्री सीमधर जिन स्तवन
महर निजर अवधारजो, पतित उधारजो रे । जिनहरख घणें सस्नेह, ग्रहसम नित नमुं रे || ५ || श्री सीमंधर जिन स्तवन
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चादलिया की
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चान्दलिया सन्देसो जिनवर ने कहे रे, इतरो काम करे अविसार रे । वारे परखदा जिनवर ओलगेरे, श्री सीमन्धर जग आधार रे |१| सोनवर्ण शरीर सोहामणोरे, मोहन मूर्ति महिमावन्त रे । जग में सुजस घणो सहुको जपैरे, भेटिस ते दिन धन्य भगवन्त रे ||२|| साहिब दुःख अनन्ता में मारे, हूं भमियो गमियो छु भवआल रे । शरणे राखेजे निज सेवकारे, तो विन कोइ न दीनदयाल रे || ३ || इतरा दिवस लग भूले थकेरे, सेव्या तो होसी सुर के एक रे । ते अपराध खमीजो माहरो रे, मोटा तो बगसे खन अनेक रे || ४ || हिवे इकतारी कीधी एहवी रे, तो विण अवरां नमवा संसरे । सुरतरू फल छोडी ने तूसने रे, खावानी केम आवे हूंस रे || ५ || हियड़ तो नेह घणो हेजालवो रे, जावे आवे करिया प्रीत रे । सम विषमी पण न गणें वाटड़ी रे, नवल सनेही नवली रीत रे ||६|| मनड़ो चंचल मुझ तनु आलसी रे, कर्म कठिन सवली अन्तराय रे । पाप कीया केई भव पाछला रे, मन मेलं किम मेलो थाय रे ||७|| चालेसर सांभले मुझ विनती रे, म्हारे तुं तुहिज साजन सैणरे । हियड़ा भीतर तं वासो वसै रे, ध्यान धरू समरू दिन रैण रे ||८|| कोई कहने मन मां वसे रे, कोई केहने जीवन प्राण रे ।