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चौवीस जिन स्तवन जनम पुरी वाणारिसी रे, अश्वसेन वामा जात । लंछण नाग सेवा करइ रे, पास जिणंद विख्यात रे ॥२४भ।। क्षत्रीकुंडइ जनमीया रे, चउवीसमा महावीर । सिद्धारथ त्रिशला तणउ रे, लंछण सीह सधीर रे ॥२५भ।। सुविधि चंद्रप्रभु ऊजला रे, पद्म वासुपूज्य रक्त । कृष्ण नेमि मुनि नीलडा रे, मल्लि पास सुरभक्त रे ॥२६॥ सोलस कंचण सारिखा रे, ए चउवीस जिणंद । पूर्जतां पातक टलइ रे, सेव्या सुरतरु कंद रे ॥ २७ ॥ सिद्धिपुरी ना राजीया रे, मोहन महिमावंत । · सेवा देख्यो तुम तणी रे, इम जिनहरख कहंत रे ॥ २८ ॥
चौवीस जिन स्तुति
राग-ललित जप रे तुं चौवीसे जिनराया। रिसभ अजित संभव अभिनंदन, सुमत पदमप्रभु पाया ॥ १ ॥ श्री सुपास चंदप्रभु सामो, सुविध शीतल सुखदाया। श्रेयांस वासुपूज जिननायक, विमल कनक दल काया ॥२॥ (स्वाम) अनंत धर्म सांत कुन्थ कहि, अरि मल्लिनाथ कहाया। मुनसुव्रत नमि नेम पार्थ प्रभु, श्री महावीर सुहाया ॥३॥ सुरनर मुणि जन रहत अहोनिस, चरण कमल लपटाया। भाव भगत जिनहरख हरख सू, चोवीसे जिन गाया ॥४॥
इति चौवीस जिन स्तुति