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________________ श्री freei Fatवली दाल कपूर हुन प्रतिनी अनंतनाथ जिन चउदमारे, सिंहस्थ सुयशा माय । पुरी विनीता नउ वणी रे, सीचाणउ प्रभु पाय रे || १५ || भविका सेवर जिन चवीस | ३२८ चवीसे शिवगामीया रे । जगनायक जगदीगरे । भ० न भानु महीपति सुत्रता रे, जणणी धर्म जिणंद | रत्नपुरीनउ राजीयउ रे, वज्र लंडण गुण बंदरे ॥ १६० ॥ अचिरा राणी जनमीयउ रे, विश्वसेन गय मल्हार । हथिणाउर संतीमरुरे, मृग लंटण सुखकार रे ॥ १७ ॥ श्री राणी क्रूर रायनउ रे, सतरम् श्री कुंथुनाथ । गजपुर प्रभुता भोगवह रे, लछण बाग सनाथ रे || १८ || देवीसुदर्शन कुलतिलउ रे, अर जिन प्रण पाच । नगर नागपुर जनमीयउ रे, नंद्यावर्त्त कहाय नंद्यावर्त्त कहाय रे ॥ १६५ ॥ मिथिला मल्लि जिणेसरु रे, कुम प्रभावती पुत्र 1 लंछण कलश सुहामणउ रे, त्रिभुवन राख सूत्र रे ॥ २० ॥ श्री मुनिसुव्रत वीसमउ रे, पद्मावती सुमित्र । राजगृहनउ राजची रे, लंडण कूर्म पवित्र रे ॥ २१ ॥ श्री नमि मिथिला राजीयड रे, वा विजय सुतन्न | चिह्न नीलोत्पल जेहन रे, लगी रहाउ सुझमन्न रे ॥ २२४ ॥ समुद्रविजय शिवा मायडी रे, सोरीपुर उत्पन्न | लंछण संख विराजीवउ रे, नेमीसर धन धन्न रे ॥ २३५ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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