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श्री जिनहर्प ग्रन्थावली जीजउ संभव गणधरु ए एकसउ बीडोत्तर । लाख दोइ मुनि पाय नमुं सम दम संयमधर ।। सउ सोलोतर गणधरा ए अभिनंदन केरा। तीन लाख रिपिवर नमुं ए टालइ भव फेरा ॥ २ ॥ सुमति जिणेसर पांचमउ ए एकसउ गणधार । तीन लाख बलि ऊपरई ए मुनि वीस हजार ।। पदमप्रमना गणधरा ए एक सउ नइ सात। । त्रिण लाखनइ त्रीस सहस मुनिवर विख्यात ॥३॥
स्वामि सुपास नमुं सदा ए पंचाणुं गणधार । त्रिम लाख अति रूअडा ए गुणवंता मुनिवर ।। चंद्रप्रभ जिन आठमउ ए व्याणं गणनायक । लाख अढाई गाई ए प्रभुना मुनि लायक ॥४॥ सुविधिनाथ नवमउ न ए गणधर अध्यासी। संयम धारी' दोइ लाख सुर शिवपुरवासी ॥ दसमउ शीतल सुखकर ए गणधर एक्यासी। लाख एक सुविवेक सहारिपिवर सुविलासी ॥ ५ ॥ इग्यारम श्रयांस तणा गणधर वायत्तरि । लाख चउरासी साधु नमुं मन वच क्रम सुध करि । वासुपूज्य वसुपूज्य तणउ छासठि गणधारी । सहस बहुत्तरि प्रभु निग्रंथ प्राणी उपगारी ॥६॥ विमल जिणसर तेरमउ ए गणधर सत्तावन ।