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चवीस जिन स्तवन
मल्लि जिणेसर मुझ मिल्यउ, रहिसु हिवड़ पगसाहि । साहिवनी सेवाथकी, भमुं नही भव मांहि ॥ १६ ॥ मुनिसुव्रत जिन वीसमउ, वीसामा नी ठाम ।
करइ प्रसंस ॥ २२ ॥
सुख (ल) हीयड़ दहीयड़ करम, करीयड़ जउ गुम ग्राम ॥ २० ॥ परम प्रमोदे पूजीयो, नमि जिनवर चित लाय | सकल पदारथ पामीये, भव भवना दुख जाय ॥ २१ ॥ श्री नेमिसर निति नमुं यादव कुल अवतंस | धन-धन नीरागी पुरुष, जग सहु अश्वसेन वामा सु तन, नील वरण जित मार | सुरपति कीथउ नागनs, संभलावी नवकार ॥ २३ ॥ चरम जिणेसर चरण जुग, नमीये धरी उलास । कीरति कमला पामीये, अविचल लील विलास ॥ २४ ॥ भाव भगति सुं वंदिये, चवीसे जिन चंद | लहtes हेलड़ मुगति पद कहे जिनहरष मुणिंद ।। २५ ।।
चउवीस जिन स्तवनं
ढाल || वीर जिणेसर नी ॥
प्रथम जिणेसर रिखभनाथ गणधर चउरासी । सहस चउरासी साधु नमुं छेदह जम बीजउ अजित जिणंद चंद गणधर मुनिवर गुण निधि प्रभु तणा ए लाख
है
पासी ॥
पंचाणु । वखाणुं ॥ १ ॥
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