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________________ श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली श्री महावीर जिन स्तवन ढाल || कृपानाथ मुझ वीनती अवधारि || एहनी सुणि जिनवर चउवीसमा जी, सेवक नी अरदास । तुझ आगलि बालक परड़ रे, हुं तर करूं वेखास रे ||१|| जिनजी अपराधी नह रे तारि, ३१६ तर करुणा रसभर्यु जी, तुंउ सहनड़ हितकार रे || जि० ॥ हुँ अवगुण नउ ओरड़उ जी, गुण तउ नही लव लेस । परगुण देखी नवि सकुंजी, किम संसार तरेसि रे ।। २ मु० ॥ जीव तणा वध म कयीं जी, बोल्या मिरखावाद | कपट करी परधन हीं जी, सेव्या विषय सवाद रे || ३सु०जि० ॥ हुं लंपट हुं लालची जी, करम कियां केई कोड़ि । तीन सुवन मई को नही जी, जे आवइ मुझ जोड़ि रे || मु०४ जि० ॥ छिद्र पराया अंह निसइ जी, जोतउ रहुॅ जगनाथ | कुगति तणी- करणी करी जी, जोड्यउ तेहसं साथरे ।।। मु०५ जि०० कुमति कुटिल कदाग्रही जी, वांकी गति मति मुझ । बांकी करणी माहरी जी, सी संभलाउ तुझ रे || मु० ६ जि० ॥ पुन्य विना मुझ प्राणीयउ जी, जाणइ मेल आथि | ऊंचा तहअर मउरीया जी, तांह पसारइ हाथ रे ॥ मु०७जि० ॥ विणि खाथां विणि भोगव्यां जी, फोकट करम बधाय । आरति ध्यान टलड़ नही जी, कीजड़ कवण उपाय रे मु०८जि० ॥ काजल थी पिणि सामला जी, माहरा मन परिणाम ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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