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श्री लिनहर्ष ग्रन्थावली निति निति वधतउ नेह, राखइ अससेण रावउत ॥३३॥ नयणां रउ ही नेह, सापुरुषां रउ सुख दीये । राखड़ नहीं मन रेह, उत्तम अससेण रावरत ॥३४॥ प्रीति से प्रीति प्रमाण, मिटे नहीं मोटां तणी। पड़ी राय पाखाण, अविचल अससेण रावउत ||३|| जंपे इम 'जसराज' वास वसावर आपणइ । मांगू छू महाराज, इतरउ अससेण रावउत ॥३६।।
पार्श्वनाथ बारहमाल
राग--मल्हार श्रावण पावस ऊलस्यो सखी, झिरमिर बरसे मेह रे। चमके वीज दसो दस सखी, दाझे विरही देह रे । साले नित निविड़ सनेह रे, सांभरीआ वाहाला तेह रे । अलगा परदेशी जेह रे, ते पणि आव्या निज गेह रे ॥१॥
इणि रिति मुझ पासजी सांभरे टेर।। भाद्रवो भरि' गाजीओ सखी, मांडी घटा घनघोर । वापीहड़ो पीउ पीउ करे सखी, मधुरा बोले मोर रे। दादुर निशि पाड़े सोर रे, खलक्या जल पावस जोर रे । गड़गड़े नदीआ चिहुं ओर रे, झड़ि लागो भागो रोर रे ।२।३०
१ भल