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श्री पार्श्वनाथ दोधक छत्रीशी ३०५ जकड्यु मोनइ जोइ, वे बंधण मइ वाप जी। सटकइ कापर सोइ, आखां अससेण रावउत ॥२३॥ पारस तणे प्रसंग, कंचण होइ कुधातु पिणि । नीच न ह्वइ क्युं नग, उत्तम अससेण रावउत ॥२४॥ जनम मरण दुख जोर, पीडयं भव भव पापीए । . नीगमि कसै निहोर. आरति अससेण रावउत ॥२५॥ जिणि जिणवर री जाइ, काने ही न सुणी कथा । तिके वहिरा हुबइ बलाइ, अंगई अससेण रावउत ॥२६॥ जे जिण मन्दिर जाइ, प्रभु पाए नमीया नहीं। तिके पर नर सेवइ पाय, ऊभा अससेण रावउत ॥२७॥ प्रभु पूजेवा पाय, नर तीरथ न गया जिके । तिके पर आगलइ पुलाय, अचरज अससेण रावउत ॥२८॥ सामल वरण सरीर, घेघवी जाणे घटा । मो मन मोर सधीर, उलसे अससेण रावउत ॥२६॥ मन कीधर महाराज, पिणि मन पसरे माहरउ । राखउ चरणे राज, आपण अससेण रावउत ॥३०॥ श्रुतवल नहीं सरवंग, कही तिसी न हुवइ क्रिया । पहुंचे केम अपंग, ऊँचउ अससेण रावउत ॥३१।। सुख मंइ परम सनेह, जउ कीजइ जगदीस सूं । नर वीजां सं नेह, ऊखर अससेण रावउत ॥३२॥ छिटकि न दाखइ छेह, जग मई तुझ सरिखा जिके |