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श्री पार्श्वनाथ दोधक छत्रीशी
साहिब करिस्ये सार, निखरी वारि निवारिस्य । अगणित अससेण रावउत ॥ २ ॥ वामा सुत सुणि वीनती ।
सिव सुख देस्ये सार, करां निहोरउ नाथ, अविचल मोन आथि, आपउ अससेण रावउत ॥ ३ ॥ वपु ताहरउ विशेष, वणीयउ सुत वामा तणा । ओपम किति अलेस, आखां अससेण रावउत ॥ ४ ॥ मानव नयण मिथ्यात, घण अंधार घूमियां । तुं रवि त्रिभुवन तात, उदयउ अससेण रावउत || ५ || भांजउ, भवरी भीति, सेवक ने राखउ सरण | अरज करां इणि रीति, अहनिसि अससेण रावउत || ६ || जिन पामीयउ जिहाज, वहतां भवसागर विच । हिवड़ मेल्हुं नहीं महाराज, अलगउ अससेण रावउत ||७|| दोपी मोटा दोह, मदन अनइ ममता मिले |
मो संतापड़ सोह, अटकर अससेण रावउत ॥ ८ ॥ धावे जम री धाड़ि, मो केड़ह मछराहती । | पाकड़ि पाड़ि पछाड़ि, आती अससेण रावउत ॥ ६ ॥ तपीयउ पावक ताप, श्रीनवकार सुणावीयउ । सुरपति कीधउ साप, ऐ ओ अससेण रावउत ॥ १० ॥ पांणी मांहि पखांण, तह तार्या त्रिभुवन धणी । तिको दीठउ राणों राण, अचरज अससेण राचउत ॥ ११ ॥ रुघपति राखी रेख, लंकागढ़ लिवरावीयउ |
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