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________________ श्री पार्श्वनाथ दशभव गर्मित स्तवन ३०१ . ढाल ६ ॥ विंदलीनी ॥ अपछर प्रभु नइ रमावइ,मठ इश्वर हालरउ गावइ रे।कीका मन मोघउ मनमाह्य मोहणगारा, तुझ दरसण लागइ प्यारा रे ॥३५की।। नयणे तुझ सूरति दीठी, साकर थी लागइ मीठी रे । की। तुं जीवन प्राण अम्हारइ, तुझ नाम तणइ बलिहारइ रे ॥३६की।। __ आवउ वामादे ना लाल, अमने तुम्हे लागउ वाल्हा रे । की। तुमने देखी हित जागइ, दीठां भूखडली भागइ रे ॥३७की।। तोरी सूरति अधिक सुहावे, वीजउ कोई दाय न आवइ रे।की। • एक देवी कड़ीए चड़ावइ, एक नाटक प्रभुनइ दिखावइ रे॥३८की।। __ कर जोड़ी प्रभु ने आगइ, एक अपछर पाए लागइ रे । की। माय नी कूखड़ली ठारी, कीरति त्रिभुवन विस्तारी रे ॥३६की। अम स्वामी तुम नइ सेवइ, तुम आगलि अगर ऊखेवइ रे ।की। तुं तर राजा त्रिभुवन केरउ, नमतां न हुवइ भव फेरउ रे १४०वी॥ प्रभुजी ने लेई इन्द्राणी आपड, ल्यउ वामा राणी आपइ रे ।की। ए वाई कुमर तुमारउ, वसी कीधउ चित्त हमारउ रे ॥४१की।। * मूक्यउ खिणि एक न जायइ, एहनउ अलजी न समायइ रे ।की। अपछर पहुती निज ठामइ, हिवइ पासकुमर वृधि पामइ रे॥४२की।। ढाल ७ ॥ रे जाया तुझ विणि घडी रे छ मास ॥ एहनी __ अनुक्रमि योक्न पामीयं जी, परिणी राजकुमारि । विपय तणा सुख भोगवी जी, कीधउ तसु परिहार ॥ ४३ ॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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