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श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली कालइ मुनिवर कालधरम कर्यउ, अष्टम भव थयउ रे एह रे ।भा दसम देवलोकई जइ ऊपनउ, प्राणत नामइतेह रे ॥भ२५सा।। नामइ भव सरना सुख भोगवी, तिहां थी चवीयउ ते तेह रे।भा दसमे भव थया पास जिणेसरु, पुण्य प्रवल फल रे एह रे।।भ२६सा।।
ढाल ५ || गिरि थी नदिया ऊतरइ रे लो | एहनी वाणारिसी नगरी भली रे लो, अश्वसेन नाम नरिंदरे । रंगीला वामादे तसु रागिनी रे लो, सीलवती गुण बंद रे ॥२२७वा॥ तसु कूखई प्रभु ऊपना रे लो, चैत्र बहुल चउथि दीस रे । चउद सुपन दीठारागिनीरे लो, निसि भर परम जगीस रेरिं२८व गरभ दिवस पूरा थया रे लो, जनम्या पासकुमार रे । २० । पोस असित दशमी निसा रे लो, छपन कुमारी सार रेरि२६वा।। जनमोच्छव करिने गइ रे लो, आन्या चउसठि इन्द्र रे । २० । स्नात्र कयं मेरु ऊपरइ रे, पाम्यं अधिक आणंद रे ॥२३०वा।। राजा पुत्रोच्छ। करी रे लो, नाम दीयं प्रभु पास रे । २० । नील कमल काया भली रे लो, अहिलंछण पग जास रे॥२३१वा।। रूपइ प्रभु रलीयामणा रे लो, दीठां उलसइ कायरे । २० । सउ वेला जउ देखीयइ रेलो, तउही त्रिपति न थाय रे।।२३२वा मुख छवि राका चंदलउ रे लो, नयण कमल अनुहार रे । २० ।
चंपकली जेही नासिका रे लो, अधर प्रवाली सार रे॥२३३वा।। - दंत मोती हीरा जड़या रे लो, नख सिख संदर घाट रे ।२०।
नव कर काया जेहनी रे लो, दीठां हुइ गहगाट रे ॥२३४वा।।