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अठोत्तर सौ पार्श्वनाथ स्तवन
२६५ साहिब पासजी हो वाल्हा पासजी हो, दरसण नीकउ राजि ।आं० तूं तारक त्रिभुवन तणउ रे, तं त्रिभुवन दीवाण । सुरनर राय राणा सहुँ लाल, सीस धरइ तुझ आण ॥ २ सा ।। तूं माहरइ जीवन जड़ीरे, तूं मुझ प्राण आधार । तुझ नइ चाहु अहनिसइ लाल, जिम कोयल सहकार ॥३सा ।। जे दिन जायइ माहरा रे, तुझ पाखइ जिनराज । ते सघला अकीयारथा लाल, जेम सरद री गाज ॥४सा।। वीसाय नवि वीसरइ रे, निसिदिन आवइ चीत । जलधर चातकनी परइ लाल, लागी माहरी प्रीति ॥५सा।। तुझ चरणे मन माहरु रे, लागउ रहइ दिन राति । फाटइ पिणी फीटइ नहीं लाल, पड़ी पटउलइ भाति ॥६सा॥. अस्वसेन कुल सेहरउ रे, वामा उर सिणगार । कहइ जिनहरख निवाजीज्यो लाल, करिज्यो माहरी सार ॥७सा।
अठोत्तर सौ पार्श्वनाथ स्तवनं
ढाल-गीता छद री श्रीखंभाइत पास नमु सदा, श्रीचिंतामणि राधणपुर मुदा । बड़ली पाटण मारग पुर पहू, ईडर कंसारीपुर सुख बहू । सुख बहू वीवीपुर संखेसर, आसाउल पंचासरै अहमदावादे विमलगिर, देवके पाटण मातरै, गिरनार वेलाउल हसोरे, दीव वीजापुर वरे । बड़नगर पाल्हणपुर धंधूकै, धवलकै तारापुरै ॥१॥