________________
૨૪
श्री जिनहर्ष ग्रन्थावली कै तौरहै तिसालूऔ, के ज्याचै जगदीस ॥ मोरा लाल |||पा० मोरा लाल वाल्हेसर निज सेवकां, नयण जौ निरखंत ॥ मोरा० ॥ इतरै ही सुख संपजै, तन ताढिक उपजंत ॥ मोरालाल ॥६॥पा० मोरा लाल मोरी आहीज वीनती, दीजै लील" विलास मोरा०॥ कहै जिनहरख सदा नमुं, कापरहेडा पास । मोरा लाल ॥७॥पा
इति श्री कापरहेड़ा पाश्वनाथ लघु स्तवनं संवत १७२७ वर्षे श्रावण सुदि ९ दिने प० समाचद लिखितं श्री जैतारण मध्ये।
(पत्र ? हमारे संग्रह में)। श्री गोडी पार्श्वनाथ स्तवन पिया सुन्दर मूरत गुण सरी, पिया दीठां अधिक सुहायौ । पिया हियडौ हरख हेज स, पिया भेटण चित ललचायौ ।।१।। म्हाने दरसन दीजे पासजी, पिया श्री गौड़ीपुर रायौ ।म्हाने० पिया थांराजो गुण हियड़ वस्या, पिया मन मेल्हण न जायौ। पिया तें कीधी काई मोहनी, पिया भेटण चित ललचायौ।म्हा।२ पिया तुमसं रहिये वेगला, पिया मुझ पाखै दिन जायौ । पिया तुझ दरसन दीस नहों, पिया ते पोते अंतरायो |म्हा०।३ पिया जाणुं मिलीये जाय ने, पिया देखीजै दीदारौ । पिया चरणे कीजै चाकरी, पिया धरिये हियड़ा मझारो।हा४ पिया ताहरै तो सेवक घणा, पिया सेव करै निस दीसो। पिया म्हारे सोतुंहीज धणी. पिया व्हालौ जी विसवा वीस ॥म्हा।५ ११ सफल करो अरदास ।
-
-
-