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प्रणम् मरसति सुमति दातारो।
हसगमण पुस्तक वीण बारो॥ नाम लीया दिन होइ सवाडो।
आदि जिणेसर कहिस्य पवाडो ॥१॥
(आदिनाथ सलोको, पृ० १६६) ऊपर के अनेक उद्धरणो से प्रकट होता है कि कवि जिनहर्ष की रचनाओं में माश्चर्यजनक वैविध्य है, जो उनकी विद्वत्ता, प्रतिभा तथा क्षमता का परिचायक है। कवि ने अपने समय की प्रायः सभी शैलियों में रचनाए प्रस्तुत करने की सफल चेष्टा की है। यह उनकी काव्य-शक्ति का असाधारण प्रकाशन है। कहा जा चुका है कि मुनि जिनहर्ष का साहित्य वडा विस्तृत है। उन्होंने बड़ी संख्या में रास' सशक रचनाए प्रस्तुत की हैं, जैसे कुमुमत्री रास, श्रीपाल रास, रत्नसिंह राजर्पि रास, उत्तमकुमार रास, कुमारपाल रास, अमरसेन-वरसेन रास, यशोधर रास, अमरदत्त मित्रानद रास, चदन-मलयागिरि रास, हरिश्चद्र रास, उपमिति-भव-प्रपचा रास, २० म्यानक रास, पुण्यविलास रास, ऋपिदत्ता रास, सुदर्शनसेठ रास, अजितनेन-कनकावती रास, महाबल-मलयासुदरी रास, शत्रुजय माहात्म्य रास, सत्यविजय-निर्वाण रास, रलचूड रास, शीलवती रास, रत्नशेपर रत्लवती राम, रात्रिभोजन त्याग रास, रत्नसार रास, जवूस्वामी रास, श्रीमती रास, आरामशोभा रात वसुदेव रास, जिनप्रतिमा हुडी राम आदि मादि । इन बहुसख्यक "रास' काव्यो का स्वतत्र अध्ययन किए जाने ये कथा साहित्य विषयक मूल्यवान ज्ञातव्य प्रात हो सकता है। इसी वर्ग