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पार्श्वनाथ स्तवन . २२६
पार्श्वनाथ स्तवन दाल ॥ ऊभी भावलदे राणी अरज करइ छइ ॥ एहनी वे कर जोड़ी साहिबा अरज करूं छु, अरज सेवकनी मानउ हो।। वामादेना जाया साहिब महिर करीजइ, महिर करीजइ साहिब
वंछित दीजइ प्रगट कहु नही छांनइ ॥ १ वा०॥ आण तुमारी साहिब हूँ सिरि धारू, चरण तुम्हारा जुहार हो। आठ करम मुझ वइरी सबला, ते आगलि किम हारुं हो ॥ २ ॥ तुझ सुपसायइ साहिब मुझ कुण गंजइ, तुमसुपसायइ मन रंजइ हो। तुम सुपसायइं कोइ आण न भंजइ, तुम सुपसायइ दुखवंजइ हो॥३ सुरतरूनी साहिब सेवा जउ कीजइ,
सेवा मां रहीयइ तउ सुरतरु फल लहीयइ हो। तिम साहिब नी साहिवा सेवा जउ कीजइ,
तउ शिवफल पामीजइ हो ॥ ४ ॥ करुणा ना सागर साहिबा गुण वइरागर, तुं तउ पर उपगारी हो। जनम मरण साहिवा हुं दुख पीड़यउ, सरणागत सुविचारी हो । ताहरइ तौ सेवक साहिबा छइ लख कोड़ी, सेवा करइ करजोड़ी हो। पिणि माहरइ नही कोई तुझ जोड़ी हो वा०, से आलस छोड़ी हो। सेवा साची जउ साहिबा ताहरीथास्यइ,तउ मुझ पातक जास्यइ हो। मन जिनहरख साहिब सुं लागउ, भ्रमण सहु हिवइ भागउ हो।७.