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________________ श्री पार्श्वनाथ स्तवन सखीरी साहिव लागइ मुझ प्यारउ, मेल्ह्यउजायइ नइन्यारउ | जिम रिदयकमल विचि धारउ, इम करि निज आतम तारउ होलाल सखीरी प्रभुना गुण मुझ मनवसिया, निरमल जिमकंचन कसीया । थाय जे वेधक रसिया, ते प्रभु संगति ऊलसीयाहो लाल ।। ६ सखीरी धन धन जे नाह निहाल, धन धन जे पाय पखाला । ते नर समकित उजुआल, जिनहरख अमरगति भालइ हो लाल । ७ श्री पार्श्वनाथ स्तवन ढाल || छाजइ वइठी साद करु, हूँ लाज मरूँ, घरि आउ क्यूनइ लो, म्हारा राजिवाजी रे ली || एहनी २२७ मनरा मान्या साहिव मोरा प्रणमुं तोरा पंकज पाय सदाई जो । म्हांरा राजेसरजी रे लो, वाल्हा बाल्हेसर पास जिणेसर, थांसं म्हे लयलाइ लो || १ म्हां ॥ साहिब उपगारी छउ हितकारी, नरनारी सहु भाखड़ लो | म्हां । भरीया गुण रा गाड़ाथेतर, सेवक म्हे तु, कहांछां सगलां साखइलोम्हां मिलीवारी म्हेहूंसकरों छां, आसधरांछां, आस्यांम्हारी पूरउलोम्हां कर जोड़ीनड़ कहांछां थांनह. परगट छॉनइ, चिंताचितरी चूरउलो म्हां म्हे तउधाहरा दास कहावां, छोड़िन जावां, थांहरे चरणेरहिस्यां लोम्हां सेवकने साहिब रउ सरणउ, ओहीज करणउ, उणथीचंछित हिस्यांलो थासुं म्हांर चित्त विलूघउ, लागउसूघउ, चोलतणी परिजाणउलो । थांह मनरी बात न जाणां, किसं वखाणां, पिणिमतचूकउ टांणउलो अवसर आव्यउ जाणन दीजइ, लाहउ लीजइ, अवसर गयउन आवइलो
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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