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________________ २२६ एल, जिनहर्ष ग्रन्थावली भव भव ना दुख सगला वीसर्या, वाधी प्रीति प्रतीत ॥३ म ।। जिणि सं मन मिलीयउ हो हिलियउ हीयडलउ, कलीयउ किणिही न जाइ । वलीयउ दिन माहरउ हो आजसुहामणु, फलीयउ सुरतरु पाय ॥४ एतला दिन तुझसे हो प्रीति बनी नही, तउभमीयउ भव माहि। प्रीति लगाइ हो मइ तुझ सं हिवइ, रहिसं चरण संवाहि ॥५ म।। पुण्य प्रबल थी हो मेल उ पामीयउ, जेहनउ धरतउ ध्यान । मन ऊलसीयउ हो तन मांवइ नही, जिम चातक जल दान ।। तुझनइ देखी नइ हो हरख वध्यउ हीयइ, अवर न आवइ दाइ । विवविराजइ हो थंभण पासजी, मुझ जिनहरख सुहाइ ॥७ म॥ - श्री पार्श्वनाथ स्तवन ढाल ॥ प्यारउ प्यारो करती एहनी सखीरी भेट्या मई जिनवर आजो, तारण भव जलधी जिहाजो। सीधा मनवंछित काजो, पाम्यउ त्रिभुवन नउ राजो हो लाल। पासजी मन मोघउ, मन मोह्यउ वामानदा। आससेण -कुल गयण दिणंदा, देखी देखी मुख चंदा। लहइ नयण चकोर आणंदा हो लाल ॥ २॥ सखोरी प्रभु मूरति देखि सुरंगी, अंगईफावइ भली अंगी। आंखडीया अधिक उमंगी, सूरति लागइ-अति चंगी हो लाल ३॥ सखीरी जाणुं रहीयइ प्रभु पासइ, पूजं प्रभु चरण उलासइ । भव भवना दुकृत नासइ, इम हियड़ामां प्रतिभासइ हो लाल ॥४॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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