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________________ राजुल बारहमास २१७ सेजड़ीया विष घोलीया, ख्याली मन्दिर हुवा मसाण | १३ || कातिक में कन्तजी पधारसी, नेम सीजसी सघला काज । मृगनेणी उछव करे, नेम जादव कारण जसराज || १४ || बारे मास पूरा हुवा, नेम आव्या नहीं नेमनाथ | आठ भवा लग अकठा, नवमे शिवपुर साथ ॥ १५ ॥ मोह जंजाल तजि करी, जादव जाय चढ़ी गिरनार । प्रभु पासे व्रत आदरी, पुहता मुगति मझार ॥ १६ ॥ राजुल बारमास हो पीउ' चाल्यो हे पदमणी, आयो मिगसर मास । चिहुं दिस सीत चमकीयो, बालहा हीये विमास ॥१॥ सर्वयो मगमिर मुहुम भणी प्रीय चालत, सुन्दरि आय अरज करे । मनमोहन कन्त विचारीये चितसुं, सुंढ़ भयां नहु काम सरे ॥ इह सेझ सकोमल मन्दिर छोड़ि के, जाय उजाड़ में कोण परे । यह भांत करे समझावत सुन्दर, वेन न लोपत पाव धरे ॥ १॥ दूहो ऊलरीयो' उतराध रो पालो पवन संजोय' । पोस" महीनै गोरीड़ी, कदे न छंड़ै कोय ' ॥ २ ॥ १ प्रीतम २ पदमणि कहे ३ उल्हरियो उत्तर दिसा ४ संयोग । ५ पोस मास री गोरड़ी ६, लोग । 1
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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