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घधा ही में पच रह्यो, आरम्भ किउ अपार । ऊठ चलेगो एकलौ, सिर पर रहेगो भार ॥५॥
( दोहा वावनी, पृ० १४ )
( ३ )
ज्यु नदी तोर जातहइ
जोवन काहें फूलि रह्यउ यउ तउ अथिर जोवन मइ रातउ मदमातउ फिरइ
ཧུ
नहीं
काम कउ मरोर्यु कछु देखइ कामिनी
सु चाहइ भोग सक्ल सुख,
बहुत
रूप देखि जाणइ मो सौ, न को
अलप जीवन
मुगति
अयाण रे ।
जाणि रे ||
जोर रे
ओर रे ||
सयोग रे ।
की
वियोग रे
इसउ अभिमानी तेरी गत हुइगी अजुरी कउ नीर रहइ, कहउ तइसउ घन जोवन, न कोई तामड
केती
भजि भगवन्त जोवन कउ
जउ
जिनहरख
तीन भवन रे
11
1
लड लाह रे |
चाह रे ॥
1
कउण रे ॥
वेर रे ।
फेर रे ॥
( पद - सग्रह, पृ० ३५२ )
कवि की प्रबोधन-वाणी वडी प्रभावोत्पादक है । इसी प्रकार कवि ने नीति तत्व का प्रकाशन भी किया है, जो जीवन-व्यवहार के लिए वडा उपयोगी तथा सारपूर्ण है । कुछ उदाहरण देखिए