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जिनहर्ष ग्रन्थावली हो जी नेमजी न दीठौ म्हारौ रूप,
देवरीय न चखी-म्हारी सुखड़ी लाल ॥१०॥ हो जी राजल लीधो व्रत भार, प्रिय पहली शिव संचरै लाल । होजी पाल्यौ पाल्यौ अविहड़ प्रेम, कहै जिनहरख भलीपरेलाल।११
श्री नेमिराजिमती बारमासा गीतं
_____ ढाल || उधव माधवने कहिज्यो | वैसाखां वन मोरिया, मउर्या सहकार । " विरह जगावे कोइली, नहीं घर भरतार ॥ १ ॥ कहिज्योरे संदेसड़उ, , जादव ने जाइ । निसिदिन झुरे गोरडी, गोरी धान न खाई ॥ २ ॥ जेठ तपे रवि आकरउ, दाझे कोमल देह । - - - विरह दवानलं ओल्हवे, प्रिउ विणि कुण एह ॥ ३क।। आसाढ़इ वादल थया , आयउ पावस मास । हुँ कहु नइ किणिपरि रहुं, एकलड़ी निरास ४ क ।। श्रावण घोर घटा करी, वरसे जलधार । वापीयड़ा पिउ पिउ करे, पिउ सालइ अपार ॥ ५क।। भादरवउ भर गाजीयउ, खलक्या जल खाल । 'चिहुंदिसि चमके वीजली, जाणे पावक झाल ॥ ६ का आसू पाणी निरमला, निर्मल गोखीर । आवउ प्रीतम पीजीये; टाढउ थाइ सरीर ॥ ७ ॥ काती काती सारिखउ, छाती मां जाणे तीरं। "