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________________ २०४ जिनह ग्रन्थावली विरह विछोही दुख भरी हे नणदल | गयउ मोरउ प्राण आधार || मो० ४ न० ॥ पाली अविहड़ प्रीतड़ी हे नणदल । भवना दुख टलीह मोरी नणदल || राजुल नेमि जिनहरष सुं हे नणदल । मुगति महल मिलाय || मो० ५ न० ॥ नेमि राजुल गीतम् ढाल || जोधपुरी नी ॥ नेमि काइ फिर चाल्यो हो, यादवराय अरज सुणउ म्हांरी अरज सुणेज्योहो, देखण हरख घणउ ॥ १ ॥ः तुझ मिलिवा तरसइ हो, मनड़उ माहरउ । नयणे जल वरसे हो, यादवराय अरज सुणउ ॥ २ ॥ कोई खून न कीधउ हो, अवगुण कोइ नही । मुझ कोई दुख दीधर हो, यादवराय अरज सुणउ || ३ || थे तर मनरा खोटा हो, नेमि जी कांड थया । हुता गुण मोटा हो, यादवराय अरज सुणउ ॥ ४ ॥ तई तउ छेह दिखाल्यउ हो, वाल्हा विरचि गयउ | तहं तर नेह न पाल्यउ हो, यादवराय अरज सुणउ ॥५॥ तुझ ऊपरि वारी हो, नेमजी आइ मिलउ । १ तुं प्रिउ हॅू नारी हो, यादवराय अरज सुणउ ॥ ६ ॥ 1 f ta
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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