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· शांतिनाथ स्तवनानि
१७७ राति दिवस थे तउ मनमांहि वसीया,थे गुणवंता गुणना रसीया हो। मन मधुकर थारइ गुण मकरंदइ, रमि रहीयउ आणंदइ हो ॥३।। थाहरइ पासइ जाणु निसिदिन रहीयइ,सुख दुख वातां कहिये हो । इम करतां जउ किम ही रीझई, तउ मन मउज लहोजे हो ॥४ ।। हुँ रागि पिणि तु तउ नीरागी, प्रीति चलइ किम आधी हो ।। खड़गतणी धारा छै सोहिली, प्रीति पालेवि दोहिली हो ।।५।। थां सरिखा जे हुई उपगारी, छेह न घइ सु विचारी हो ।। मीठे वचने देई दिलासा, पूरइ सगली आसा हो ॥६।।
मोटो री ए रीति भलाइ, सेवक करे सवाइ हो । 'तउ जिनहरख सुजस जग वाधइ, निज प्रातम गुण साधइ हो ।
श्री शांतिनाथ स्तवन ।। ढाल-मुझ सूधउ धरम न रमीयउ रे । एहनी ।। सोलम संतीसर राया रे, पंचम चक्रवर्ति कहाया । प्रणमइ सुरपति जसु पाया रे, मृदु लंछण कंचण काया रे ॥१॥
मन मोहन त्रिभुवन सामी रे, जगनायक अंतरजामी । - प्रभु नामइ नव निधि पामी रे, प्रणमु अह निशि सिरनामी ॥२॥ नयणे प्रभु रूप सुहायइ रे, निरखंता पाप पुलायइ । दुख दोहग निकट न पावइ रे,जउ भाव भगति सुध्यावइ ॥३॥ बीजा छइ देव घणाई रे, तेहथी नवि थाइ मलाई । जिनराज मुगति सुखदाई रे, अधिकी प्रभुनी अधिकाई ॥४॥ सुर तरु नी सेवा कीजइ रे, तउ वंछित फल पामीजइ ।