________________
जिनहर्प - ग्रन्थावली
खडीए अलज हुंत रे लाल, चाहंतां मड़ दीठ | गु. | जनम सफल थयुं माहरउ रे लाल, पाप गया सहु नीठ | गु. ५। आठ पहुर आगल रही रे लाल, सेऊ ताहरा पाय | गु.] तउ ही थाक चडड़ नही रे लाल, ऊजम विमणु थाय ॥ गु. ६ता. ॥ देव अवर तु छइ घणा रे लाल, ते सहु दीठ सदोप | गु.। दोष रहित तु गुण भरे लाल, न्यायइ पाम्यउ मोख | गु.७ | तिथि कारण हुं ताहरइ रे लाल, सरण आयउ आज | गु. | सु नजर करि धरि प्रीतडि रे लाल, पूरउ वंछित काज ॥ गुप्ता. ॥ संसारी सुख सु नही रे लाल, माहरड़ कोई काज | गु. |
मांगु करजोडि नई रे लाल, आप अविचल राज || गु. हता ॥ तुझ मूरति मन मोहणी रे लाल, रही यह सनमुख जोई | गु. तर ही लोयण लालची रे लाल, भूख्या त्रिपति न होइ ॥ गु. १०। निज सेवकनी वीनती रे लाल, वाल्हेसर अवधारि । गु. | कहइ जिनहरख कृपा करी रे लाल, चउगति भ्रमण निवारि । ११ श्री संभवनाथ स्तवन
१७०
|| ढाल ||
निशि दिन हो प्रभु, निशि दिन ताहरउ ध्यान, हीयडा हो प्रभु हीयडा थीं तु नवि टलइ जी । परतखि हो प्रभु परतखि न मिलई आई, सूतां हो प्रभु सूता हो सुपना मां मिलड़ जी ॥१॥