SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजितनाथ - स्तवन १६६ लीधा विणि रहस्यु नही रे लाल, जाणउ तिम धरु प्रेम ॥ सु. ६ ॥ हुं तउ सेवक ताहरउ रे लाल, जगजीवन जगदीस | ० | तुझ नइ छोडी साहिबा रे लाल, अवर न धारू सीस ॥ सु. ७८ ॥ तु प्रभु करुणा रस भरे लाल, हुं करुणा नउ ठाम | सु० | जिम जाउ तिम राखिज्यो रे लाल, माहरइ तुमस्युं काम ॥ सु. ८॥ जर तुझ नाम हीयड़ चस्यउ रे लाल, तर जाग्यउ मुक्त भाग | सु. | सा पुरुसां नी संगतई रे लाल, लहीयइ सुख सोभाग ॥ सु. ६ ॥ इकतारी कीधी खरी रे लाल, महं साहिब तुम साथि | सु० । मव भवतु मुझ वालहउ रे लाल, भवभव तु मुझ नाथ ॥ सु१ ० ॥ साहिब - सफली कीजीयइ रे लाल, सेवकनी अरदास | सु० 1. कहइ जिनहरण मया करी रे लाल, दीजड़ सिवपुर वास | सु. ११ । श्री तारंगा मंडप अजितनाथ स्तवन ढाल- अल वेलानी " मन मां हुं हुंती वणी रे लाल, धरतर अंग उमेद, गुणवंता, रे । भावई श्री भगवंतनी रे लाल, जात्र करू द्र वेद ॥ गु. १॥ तारंगड़ रंगई करी रे लाल, भेट्या अजित जिणंद गु० | जनम जीवित सफलउ थयउ रे लाल, आज थया आणंद | गु. २ता. । मन विकस्यउ तन उलस्यु रे लाल, हीयडड़ हेज विशेष | गु० | 1 नयण कमल विकसित थयउ रे लाल, प्रभु मुख सिसिहर देखि | गु. ३ पाम्यउ दरसण ताहरू रे लाल, हुं थयुं आज निहाल गु.। समकित मुझ निर्मल थयउ रे लाल, भागउ मिथ्या साल | गु. ४ | t 1
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy