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आदिनाथ स्तवनानि
मिथ्या रयणी भाग सरीखौ, कुमति कवच भेदण सर तीखौ । तु जग माहे महिमा धारी, हुं बलिहारी स्वामि तुम्हारी | २५ | मोहन मूरति ताहरी रे मुझ श्रातम आधारी ।
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वर न दीस के हमारे, जिन मुड़ा आकारो । जिन मुड़ा जिन माहे दीसह, देखत ही मुझ तन मन हींस । करम्भ भरम्म सहु भय भागउ, मोहन मूरतिस्यु' चित लागउ | २६ | मरु देवानउ लाडलउरे, नाभि न रिदं मल्हारो । मुगति पुरीनउ राजीयउ रे, दउलति नउ दातारो । उदति नउ दातार कही जड़, एहतणी निति श्रणवही जड़ । निज मानव भव सफलउ कीजेड, मरु देवा नंदन सलहीजड़ |२७| सिद्धि भुवन जलनिधि शशीरे, अतिपद मास कुमारो | कीधा जिन चद्राउलारे, राय धरण पुरहि मकारो | राय धणपुर चउमासउ कीधउ, जिनवर स्तविरसना फल लीधउ | दुःख भंडार संसारन भमिसु, सिद्धि भुवन जिन हरपई रमिसु |२८| श्री आदि नाथ
स्तवनम्
||ढाल || नीदडली वइरिणी हुइरही । एहनी ||
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रिपभजिन भाव भेटीयइ, मेटीजड़ हो भव मंत्र ना पाय || रि ॥ जेहनड़ नाभइ सुख पामीयइ, जायड़ जायइ हो दुख ताप संताप |१| पुगइ पुगड़ हो मन वंछित स रि लहीयड़ रहोसुख लील विलास । जिणि जुगला धरम निवारीयउ, जिणि थापी हो जगनी सहुनीति । निज राज्य देई सउ पुत्र नङ्, दान वरसी हो दीघउ भली बीति |२|
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