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________________ १५६ आदिनाथ स्तवनानि मिथ्या रयणी भाग सरीखौ, कुमति कवच भेदण सर तीखौ । तु जग माहे महिमा धारी, हुं बलिहारी स्वामि तुम्हारी | २५ | मोहन मूरति ताहरी रे मुझ श्रातम आधारी । । î वर न दीस के हमारे, जिन मुड़ा आकारो । जिन मुड़ा जिन माहे दीसह, देखत ही मुझ तन मन हींस । करम्भ भरम्म सहु भय भागउ, मोहन मूरतिस्यु' चित लागउ | २६ | मरु देवानउ लाडलउरे, नाभि न रिदं मल्हारो । मुगति पुरीनउ राजीयउ रे, दउलति नउ दातारो । उदति नउ दातार कही जड़, एहतणी निति श्रणवही जड़ । निज मानव भव सफलउ कीजेड, मरु देवा नंदन सलहीजड़ |२७| सिद्धि भुवन जलनिधि शशीरे, अतिपद मास कुमारो | कीधा जिन चद्राउलारे, राय धरण पुरहि मकारो | राय धणपुर चउमासउ कीधउ, जिनवर स्तविरसना फल लीधउ | दुःख भंडार संसारन भमिसु, सिद्धि भुवन जिन हरपई रमिसु |२८| श्री आदि नाथ स्तवनम् ||ढाल || नीदडली वइरिणी हुइरही । एहनी || • रिपभजिन भाव भेटीयइ, मेटीजड़ हो भव मंत्र ना पाय || रि ॥ जेहनड़ नाभइ सुख पामीयइ, जायड़ जायइ हो दुख ताप संताप |१| पुगइ पुगड़ हो मन वंछित स रि लहीयड़ रहोसुख लील विलास । जिणि जुगला धरम निवारीयउ, जिणि थापी हो जगनी सहुनीति । निज राज्य देई सउ पुत्र नङ्, दान वरसी हो दीघउ भली बीति |२| {
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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