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________________ I जिनहर्ष - प्रन्थावली खरउकरी सहु सद्दहुरे, सद्दहणा 'छड़ सुद्धो । 1 तुझ चरण संवाहे । 'सहहणा सूची मन माहे, हुं तरिस्युं मुझ आधार एतउ छड़ सांई, हिवड़ मुझ पार ऊतारि गोसाई | २० | अंतरजामी माहरारे, दाखू दीन दयालो । खंडी - ए आणी या लीए रे, मुझ सनमुक्ख निहालो । • मुझ सनमुक्ख निहालउ नयणे, वार वार स्युं कहीय वयो | वेसर तु परउपगारी, अंतरजामी जाउं बलिहारी ॥ २१ ॥ जी ॥ निरधारी श्राधारा तु रे, निवली नइ बल तुज्को । नाथ अनाथां नाथ तुरे, राखउ भमतो मुझो । - - १५५ 1 --- " राखउ सुझनइ चउगति, भमतउ, जामण मरण तणा दुख खमतउ | करि उपगार हिवड़ हुं थाकउ, दे आधार त्रिजग तुझ साकउ | २२ | शत्रु ऊपर खीजइ नही रे मित्र उपरि नहिं रागो । न्यायई नीरागी कउ रे, साचउ तु वीतरागो । साच तु वीतराग कहावर, माया ममतादूरि रहावई विषय ता सुख मूल न चाखर, शत्रु मित्र स्युं समता राखई | २३ | सुर नर काम विडंवीयारे, पड़ीया नारी पासो । दासतणी हरिरोल वरे, खिणि मेल्हइ नही पासो । । खिणि मेल्हड़ नही पास खुता, लाज गमी जग माहि विगूता । स्वामी तुम्हें नारी वसि नाव्या, सुरनर सहुयइ नारि नचाव्या | २४| बलिहारी ताहरीरे, तु मुझ जीवन प्राणो । • प्राण सनेही माहरा रे मिथ्या रयणी भाणो ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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