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आदिनाथ स्तवनानि जीपइ जे नर गति करी रे, प्रलय काल समीरो । प्रलय समीर चलइ गति जे नर, हाथे ऊपाड़इ मन्दिर गिरि । चरणे नम मारग अवगाहइ, ते नर तुझ गुण कहिवा चाहइ ।४। मुझ मति सारू ताहरा रे, गुण गाउ जगदीसो । काले वाल्हे माहरे रे, मत मन धरीज्यो रीसो । मत मन धरीच्यो रीस सनेही, तुझ उपरि वारू मुझ देही । तुं साहिब हुँ दास तुमारउ, मुझ सूए संबंध विचारउ ॥५॥ वाहरा गुण तउ ऊजला रे, जिम निरमल गोखीरो । . गंगा जल जिम निरमला रे, बहु मोलिक जिम हीरो। बहु मोलिक जिम हीरा निरमल ग्राम चंद किरण सम उज्जल । सेवक रिदय कमल विचि सोहई,ताहरा गुण सहुना मन मोहह ।६ तु चेतन गुण प्रातमा रे, तु निगुण निरलेपो । अकल सकल परमातमा रे, घट घट तुझ विक्षेपो । घट घट मध्य रह्यउ तुव्यापी, तइ सहु सृष्टि तणी थिति थापी । तु संकल्प विकल्प विवर्जित, चेतन अष्ट कर्म दल तर्जित ॥७॥ तुं शंकर शंकर थकी रे, तु ब्रह्मा ज्ञानीशो । ध्येय रूप धाता तुम्हे रे, तु पुरुषोत्तम ईसो । तुं पुरुषोत्तम विष्णु विधाता, तु जगनायक तु जग त्राता । पुरुष प्रवर पुंडरीक सुजाणु, शंकर मूर्ति त्रिमूर्ति वखाणु ॥८॥ तु शिव नारी सिर तिलउ रे, तु शिव नारी कंतो। . तु शिव नारी भोगवइ रे, अविचल सुक्ख अनंतो।