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आदिनाथ स्तवनानि भेट्यो भेट्यो भय भंजण भगवंतरे, चूरो सगली माहरी चीत रे। दीजे मुझने सुख अनंत रे, चरणे लाग्युइम जिनहरख कहंत रे ।
इति श्री आदिनाथ स्तवन विमलाचल मंडण आदिनाथ स्तवन अम्मां मोरी सांभल वात हे । अम्मां मोरी श्री विमलाचल-तीरथ भेटिये हां, हांजी। " कीजै गिरमल गात हो । अम्मां मोरी दुरगत ना दुख दूरे मेटीयै हो । हां जी ॥१॥ सेव॒जे तीरथ सार है, सीध अनंता सीधा ऊपरै हे हांजी । भेटे जे नर नार हे, नरक अने तिरजंच तस टरै हे हांजी ॥२॥ सांम्हा भरता पाव दे, पाप कदे मिट जाये आपदा हे । हांजी दीठां तीरथ राव हे, पांमीजै मन मानी संपदा हे ॥३॥ हांजी हीय. हरख न माइ हे,चहिरी पालुघर थी निकल है। हांजी पालीतणे जाइ हे,ललित सरोवर झालु मन रली हे ।४] हां जी निरमल होइ शरीर हे, आइ जिणेसर को सर पूजियै हे, - हांजी वटै करम जंजीर हे, भाव घणे जिनराज जुहारिहै हो ।। हांजी बलि पूजुमन रंग हे, राइण हेठल पगला प्रभुतणा हो। हाजी खस्तर वसही सुरंग, अदबुदनाथ जुहारुप कलाप ।६। हाजी पांडव माही ठांण रे, टुक निहाल मुरदेवा तणो हो । हांजी सिववारी सहिनांण हे,सिधवड़ देखण हरख हियौ घणैए७