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________________ १४४ जिनहर्ष-ग्रन्थावली सोवनगिरि आदिनाथ स्तवन प्रथम जिणेसर प्रणमीय रे, वाल्हा सोवनगिर सिणगार रे । लागी २ प्रभु सुप्रीत अपाररे, म्हारे २ तुहिज प्राण आधार रे । दीजे २ मुझने सुख सिरदार रे,कीजे २ मुझसुप्रभु उपगार रे ।११ साहिबो सेवी रे सुखकार । महिमा थारी रे महियलै रे वाल्हा । देवल नित गहगाट रे, नीको नीको अजब वण्यो थारो घाट रे । आचै आवै नर नारी घाट रे, नाचे नाचे रंग मंडप चौ नाट रे । पांमै पांमै शिव नगरी नौ वाट रे ॥ २ ॥ अन्तरजाम मांहरा रे बाल्हा, एक सुणो अरदास रे । पूरो २ माहरा मननी आसरे, मुझने मुझनें प्रभुजी नो वेसासरे। दीठार हियडै मधि उल्हास रे, जाणू२ मेल्हीजे नहीं पास रे ।३। दीठां ही दौलत हु देवे वाल्हा, पूजे वंछित कोड़ रे । सेवे सेवे जे तुझ्ने करजोड़ रे, जावे नावे तेह. काइ खोड़ रे। थारीरकोण करे प्रभु होडरे,साहिब मुझनैं भव बंधनथी छोड़।४। मूरत मोहण वेलड़ी रे वाल्हा, रलिया लो तुझ रूप रे । सोहे २ प्रभुजी अधिक सरूप रे, दीये २ सुन्दर वदन अनूप रे । जोतां २ जायै दलद दुख धूपरे,माने माने मोटा सुरनर भूप रे ।। मात पिता प्रभु तु धणी रे बाल्हा, तु ही जीवन प्रांण रे । वाल्होर माहरौ तुदीवाणरे, हुँतो प्रभुजी सीसधरूं तुझांण रे। तू तो जाणे सगलवात सुजाणरे भवरमाहरा तुहिज देवप्रमाणरे। अरज सफल कर माहरा रे वाल्हा, सफल करो मन खंत रे ।
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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