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श्री वल्लभपुर मवल, तासु पति श्रीपति सोहै। कुमरी जोवनवंत, रूप रति सुर नर मोहइ । चवि चौबोली नाम, तेण हठ एम सबाह्यउ।
बोलावेसी बहसि, वार मो च्यार उमाह्यौ । जिनहर्ष पुरुष परणिनी तिको, तां लोग नर निरखु नही । वह भूप आइ वदी हुआ, वोल न वोले मैं कही ॥२॥
( चौवोली कथा, पृ० ४३६) इसी प्रकार कवि की ब्रजभाषा भी अत्यन्त मधुर एव आकर्पणमयी है :फागुन मास उलामह खेलत,
फाग रमै बहु नारि की टोरी। ताल कसाल मृदग वजावत,
ल्यावत चन्दन पेसर घोरी ॥ लाल गुलाल अवीर उडावत,
गावत गीत सुहावत गोरी। नीरसुगन्ध सरीर कु छांटत,
रीझत गेह करी जव होरी ॥४॥
( राजुल वारहमास, पृ० २१६) कवि की पनावी भापा का भी एक उदाहरण पृष्ठ २२५ तथा सिन्धी भापा का भी इसी अन्य के पृ० ३४१ में देखना चाहिए। ___कवि जिनहर्ष का ऐसा भाषाधिकार आश्चर्यजनक है। साथ ही इन सभी भाषाओं की रचनाओं में मापने साहित्यिकता का गण बनाए