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________________ १२२ जिनदर्प-प्रन्थावली पीउ मोसे परदेसड़े, यो मासा | निसनेही परिहरि गयो, गोरी स्रं करि गाढ ॥८॥ सैयां श्रावण श्रावियो, उमहिं" आयो मेह | चमकण लागी बीजली, दाभण लागी देह ॥६॥ माद्रवड़ौ भरि गाजियो, नदी ए खलक्या नीर | बावहियो" पिउ पिउ करें, घरि " नहिं नणदल वीर ॥१०॥ मास विदेस पीउ, विरह लगावै वाळ | सेजडियां विस घोलियां, मंदिर हुआ मसाण ॥११॥ काती कंत पधारिया, सीधा वंछित काज । घरि दीपक उजवाळिया, गोरंगी जसराज ॥ १२ ॥ — नरह तिथि रा दूहा - * पड़िवा पहिलै पक्खड़े, कर सूती सिणगार । अस नायौ बल्लहौ, गोरंगी भरतार ॥१॥ (८) दुख दे पापी हालियो ( ९ ) सखि हे (१०) उमडि ( ११ ) पापहीओ (१२) वली नरणदल रा वीर । * अन्य प्रति में प्रारंभ के ६ दोहे निम्न प्रकार से हैं:-- पडिवा पीउ हालीप्रो, मइ हालंतो दीठ 1 मनड़ो ज्याही सु गयो, नेण बहोड्या निट्ठ ||१|| बीज ज प्राज सहेलियां उगो चद मयंद दुनिया वदे चंद ने, हुं वढू प्रीय चद ॥२॥
SR No.010382
Book TitleJinaharsh Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages607
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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