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- बारह मास रा दूहा :पीउ न चलो पदमिणी कहै, आयौ मगसिर मास । चहुं दिसि सीत चमकियो, वाल्हा हियै विमास ॥१॥ ऊनषियो' उतराध रो, पाळो पवन सू जोय । पोख मास में गोरड़ी, कदे न छडै कोय ॥२॥ माह महीनै सी पड़े, इणि रिति चले वलाय । ऊडै पड़वै पोढिये, कामणि कंठ लगाय' ॥३॥ फागुण मास वसंत रित, रीत सुणि भरतार । परदेसां री चाकरी, जाइ कुण गमार ॥४॥ चतुर महीने चेत रे, हुप्रो ज चलणहार । तुंग कसै तुरियां तणां, साथीडां सिरदार ॥ ५ ॥ पिउ वैसाखे हालियो, सैणा सीख करेह । ऊभी भूरै गोरड़ी, डव डब नैण भरेह ॥ ६॥ लू बाजै दिणयर तपै, मास अतारौ जेठ । आंख्यां पावस उल्लस्यो, ऊभी मेड़ी हेठ ॥७॥
(१) उल्हरीयो उत्तर दिसा (२) सयोग (३) जोग (४) रुकाय (५) सुण भोगी (६) चाले (७) थी खडहड पडी ।